Month: जनवरी 2019

राष्ट्रों में धर्मी

इस्राएल के याद वाशेम के हौलोकास्ट म्यूजियम में मैं और मेरे पति राष्ट्रों में धार्मिक बगीचे में गए, जो उन पुरुष और महिलाओं के सम्मान में है जिन्होंने यहूदियों के सर्वनाश के समय यहूदी लोगों को बचाने के अपने प्राणों की आहूति दी थी । मेमोरियल को देखते हुए हमारी भेंट नीदरलैंड से आए एक समूह से हुई। एक महिला उस बड़े पत्थरों पर अपने दादा-दादी का नाम खोजने के लिए आई थी। युक्ति के साथ हम ने उसके परिवार की कहानी के बारे में पूछा।

रेजिस्टेंस नेटवर्क के सदस्य, उस महिला के दादा-दादी रेव. पीटर और आद्रिआना ने एक यहूदी लड़के को अपने घर में आने दिया और उसे 1943-1945 तक अपने आठ बच्चों में सबसे छोटे बच्चे के रूप में रखे रखा।

उस कहानी से भावुक हो कर हम ने पूछा, “क्या वह लड़का जीवित बचा?” उस समूह से एक वृद्ध भद्रपुरुष आगे आया और बोला, “मैं वह छोटा लड़का हूँ!”

यहूदियों के लिए अनेक लोगों की वीरता मुझे रानी एस्तेर की याद दिलाती है। हो सकता है 350 ईस्वी में रानी ने सोचा कि वह राजा क्षयर्ष के यहूदियों को मार डालने के आदेश से बच सकती थी, क्योंकि उसने अपनी पहचान को छिपाए रखा था। परन्तु वह यह कार्य करने के ली कायल हो गई-यहाँ तक कि मृत्यु तक के जोखिम में-जब उसके चचेरे भाई ने उससे यहूदी विरासत के बारे में शांत न रहने की दोहाई दी क्योंकि उसे “ऐसे समयों के लिए ही” उस पद पर रखा गया था (एस्तेर 4:14)।

हो सकता है हमें कभी भी ऐसा नाटकीय निर्णय लेने के लिए कभी न कहा जाए। परन्तु सम्भव है हमें एक अन्याय के बारे में बोलने या शान्त रहने; मुसीबत में किसी की सहायता करने या छोड़ देने के चुनाव का सामना करना पड़े। परमेश्वर हमें साहस प्रदान करे।

फ्रॉस्टबाइट से मुक्त

सर्दियों के एक दिन मेरे बच्चों ने स्लेज पर जाने की विनती की। तापमान ज़ीरो डिग्री फारनहाईट तक पहुँचा हुआ था। हिम कण हमारी खिडकियों तक फैले हुए थे। मैंने इस पर विचार किया और हाँ कह दिया , परन्तु उन्हें अच्छे से कपड़े पहनने और एकसाथ रहने और हर पन्द्रह मिनट में अन्दर आने के लिए बताया।

प्रेम में मैंने वे नियम बनाए, ताकि मेरे बच्चे फ्रास्टबाइट के बिना मुक्त हो कर खेल सकें। मेरे विचार से भजन 119 का लेखक परमेश्वर के भले मन्तव्य को पहचान गया, जब उसने लगातार दो पदों को लिखा, जो एक दूसरे के विरोधी प्रतीत होते हैं: “मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार सदा सर्वदा चलता रहूँगा” और “मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है” (पद 44-45) । यह कैसे है कि भजनकार ने स्वतन्त्रता और व्यवस्था का पालन करने वाले आत्मिक जीवन को एकसाथ मिला दिया? 

परमेश्वर के बुद्धिमतापूर्ण निर्देशों का पालन करना हमें उन परिणामों से बचाता है, जो उन चुनावों से आते हैं, जिन्हें बाद में बदलना चाहते हैं। दोषभाव और पीड़ा के बोझ के बिना हम अपने जीवनों का आनन्द उठाने के लिए स्वतन्त्र हैं। परमेश्वर हमें यह करो और यह न करो के निर्देशों के साथ नियन्त्रित नहीं करना चाहता, परन्तु उसके निर्देश दर्शाते हैं कि वह हम से प्रेम करता है।

जब मेरे बच्चे स्लेज चला रहे थे, मैंने उन्हें पहाड़ी से तेज़ी से नीचे आते देखा। मैं उनके हंसी के ठाहकों और उनकी गुलाबी हुई गालों को देखकर मुस्कुराई। मेरे द्वारा दी गई सीमाओं में वे स्वतन्त्र थे। यही अकाट्य विरोधाभास परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में भी है-यह हमें भजनकार के साथ यह कहने की ओर ले कर जाता है, “अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूँ” (पद 35)।

एक विशालदर्शी दृश्य

यूएस के प्रथम अफ्रीकी-अमरीकी राष्ट्रपति के अधिष्ठापन के टेलिविज़न कवरेज के दौरान कैमरे ने लगभग दो लाख लोगों की बड़ी भीड़ का एक विशालदर्शी दृश्य प्रस्तुत किया, जो इस ऐतिहासिक घटना के गवाह बनने के लिए एकत्र हुए थे। सीबीएस के समाचार प्रवक्ता बॉब स्किफर ने कहा, “इस शो के सितारे को बहुत बड़ी मात्रा में शूट किया गया है।” इतनी बड़ी भीड़ को और कुछ शूट नहीं कर सकता था, जो लिंकन मेमोरियल से कैपिटल तक फैली हुई थी।  

पवित्रशास्त्र हमें इससे भी बड़ी भीड़ की एक झलक प्रदान करता है, जो यीशु में विश्वास के द्वारा एक की गई है: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्‍वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिसने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो” (1 पतरस 2:9)।

यह बहुत कम गौरवान्वित लोगों की तस्वीर नहीं, अपितु बचाए गए अनेकों की है जो “हर एक कुल और भाषा और लोग और जाति में से” हैं (प्रकाशितवाक्य 5:9)। आज हम सम्पूर्ण पृथ्वी पर बिखरे हुए हैं, जहाँ अनेक लोग अकेला अनुभव करते हैं और यीशु के साथ सम्बन्ध के कारण दुःख उठाते हैं। परन्तु परमेश्वर के वचन के लैंसों के द्वारा हम विश्वास में अपने भाइयों और बहनों की एक बड़ी तस्वीर को देखते हैं, जो उसका आदर करने के लिए एकसाथ खड़े हैं जिसने हमें छुड़ाया है और अपना निजभाग किया है।

आओ हम उसकी स्तुति में एकसाथ मिल जाएँ जो हमें अन्धकार से ज्योति में ले का आया! 

एक बड़ी बात

परिवार के एक सदस्य को दिसम्बर का किराया चुकाने के लिए सहायता की आवश्यकता थी। परन्तु उसके परिवार को वह विनती एक बोझ जैसी प्रतीत हुई—विशेष रूप से वर्ष के अन्त में अपने अनापेक्षित खर्चों के कारण। परन्तु उन्होंने अपनी बचत को निकाला और परमेश्वर की उपलब्धता के लिए धन्यवादी हुए—और अपने सम्बन्धी के आभार से भी आशीषित हुए।

उसने उन्हें एक धन्यवाद का कार्ड प्रदान किया जिसपर आभार के शब्द लिखे हुए थे। “तुम लोगों ने यह फिर से किया...भले कार्य करते हुए, इसे ऐसे निपटा दिया जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं थी।”

दूसरों की सहायता करना एक बड़ी बात है, परन्तु परमेश्वर के लिए है। नबी यशायाह ने इस्राएल राष्ट्र का ध्यान इसी ओर किया। लोग उपवास रख रहे थे परन्तु फिर भी लड़ाई झगड़ा कर रहे थे। इसलिए नबी यशायाह ने कहा: “अन्याय से बनाए हुए दासों, और अन्धेर सहनेवालों का जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना... अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे–मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?” (यशायाह 58:6-7)।

यशायाह कहता है कि इस प्रकार का बलिदान परमेश्वर के तेज को बांटता है, परन्तु यह हमारे टूटे होने को भी चंगा करता है (पद 8)। जिस प्रकार उस परिवार ने अपने सम्बन्धी की सहायता की, उन्होंने अपने खर्चों की और भी देखा, और देखा कि वे पूरे वर्ष किस प्रकार एक उत्तम प्रबन्ध कर सकते थे। उदार होने के लिए यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी: “तेरा धर्म तेरे आगे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा।” (पद 8)। अन्त में, अपने सम्बन्धी को देने ने उन्हें और आशिषित किया। और परमेश्वर को? उसने तो पहले ही अपना सबकुछ दे दिया था--सप्रेम। 

प्रभावित करने का प्रयत्न

जब एक कॉलेज की क्लास एक सांस्कृतिक भ्रमण पर गई, तो निर्देशक ने अपने एक सितारे विद्यार्थी को बिलकुल भी नहीं पहचाना। कक्षा में उसने अपनी पैंट के नीचे छ: इंच की एड़ी के जूते पहने हुए थे। परन्तु अपने वाकिंग बूट्स में वह पाँच फुट से भी कम लम्बी थी। “मेरी जूती की एड़ियाँ बिलकुल वैसी ही हैं, जैसी मैं होना चाहती हूँ,” उसने हँसकर बताया। “परन्तु मेरे बूट्स ठीक वैसे ही हैं, जैसी मैं वास्तव में हूँ।”

हमारी शारीरिक दिखावट यह नहीं बताती कि हम कौन हैं; यह हमारा हृदय ही है जो महत्वपूर्ण है। यीशु के उन लोगों के लिए बहुत ही कठोर शब्द थे जो दिखावे के गुरु कहलाते थे—अत्यधिक धार्मिक “फरीसी और व्यवस्था के शास्त्री।” उन्होंने यीशु से पूछा कि उसके शिष्य भोजन से पहले हाथ क्यों नहीं धोते हैं, जैसा उनकी धार्मिक परम्पराएँ बताती हैं (मत्ती 15:1-2)। यीशु ने पूछा, “तुम भी अपनी परम्पराओं के कारण क्यों परमेश्‍वर की आज्ञा टालते हो?” (पद 3)। फिर उसने बताया कि अपने माता-पिता की देखभाल करने के स्थान पर उन्होंने उनकी सम्पत्ति लेने के लिए किस प्रकार एक वैधानिक बचाव बना रखा है (पद 4-6), इस प्रकार वे अपने माता-पिता का अनादर करते और पाँचवीं आज्ञा का उल्लंघन करते हैं (निर्गमन 20:12)।

यदि हम अपने दिखावे  से अभिभूत हैं और परमेश्वर की स्पष्ट आज्ञाओं में बच निकलने का रास्ता खोजते हैं, तो हम उसकी व्यवस्था के आत्मा का उल्लंघन कर रहे हैं। यीशु ने कहा कि “बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है (मत्ती 15:19)। केवल परमेश्वर, अपने पुत्र यीशु की धार्मिकता के द्वारा हमें एक साफ़ मन प्रदान कर सकता है।